👉 लाइफबॉय साबुन: सेहत का साथी या नुकसान का सौदा?
🔹 शुरू करने से पहले...
आजकल टीवी पर, मोबाइल पर, हर जगह एक ही चीज़ नजर आती है — विज्ञापन। बड़े-बड़े दावे, चमकते चेहरे और जादू जैसा असर दिखाने वाले ये विज्ञापन हमें कुछ भी खरीदने को मजबूर कर देते हैं।
एक ऐसा ही साबुन है लाइफबॉय, जो कहता है –
“लाइफबॉय है जहां, तंदुरुस्ती है वहां”।
अब सोचने वाली बात ये है — क्या सच में साबुन से तंदुरुस्ती आती है? अगर ऐसा होता, तो हमें दूध, सब्ज़ियाँ, फल, रोटी कुछ भी खाने की ज़रूरत नहीं होती — बस लाइफबॉय लगाओ और तंदुरुस्त हो जाओ!
🔹 असलियत क्या है?
सच ये है कि लाइफबॉय कोई नहाने का साबुन नहीं है, ये तो एक कार्बोलिक साबुन है — यानी ऐसा साबुन जो पशुओं (कुत्ते, गधे, बिल्लियाँ) को नहलाने के लिए इस्तेमाल होता है।
विदेशों में इससे इंसान नहीं, जानवर नहाते हैं। लेकिन हमारे देश में करोड़ों लोग रोज़ इसी साबुन से नहा रहे हैं!
🔹 ये साबुन बनता कैसे है?
1. पहले नहाने वाले साबुन (जैसे लक्स) और कपड़े धोने वाले साबुन (जैसे रिन, सर्फ) बनाए जाते हैं।
2. फिर जो बचा-खुचा कचरा और केमिकल बचता है, उसी से बनाया जाता है लाइफबॉय जैसा कार्बोलिक साबुन।
मतलब?
सबसे घटिया चीज़ों से बना सबसे ज्यादा बिकने वाला साबुन!
🔹 नुकसान क्या है?
लाइफबॉय में इतने तेज़ केमिकल होते हैं कि:
त्वचा को पूरी तरह सुखा देता है
खुजली होती है
स्किन फटती है
एग्जिमा, सोरायसिस जैसे चमड़ी के रोग हो जाते हैं
आपने कभी नहाने के बाद शरीर पर नाखून चलाकर देखा है? अगर सफेद लाइन बनती है, तो समझिए कि आपकी त्वचा सूख चुकी है — और यही है बीमारी की शुरुआत।
फिर क्या होता है?
महंगी दवाइयाँ
दवाइयों के साइड इफेक्ट
और फिर नए रोग...
एक साबुन से शुरू होकर पूरा शरीर बीमार हो जाता है।
🔹 तो अब क्या करें?
✅ जब भी साबुन खरीदें, सिर्फ सस्ते दाम को न देखें।
✅ असली तंदुरुस्ती तो आती है अच्छी खुराक, साफ-सफाई, व्यायाम और सही आदतों से — न कि किसी साबुन से।
✅ विज्ञापन पर आंख मूंद कर भरोसा न करें, अपना अक्ल और अनुभव इस्तेमाल करें।
साबुन में TFM का मतलब होता है:
TFM = Total Fatty Matter
(टोटल फैटी मैटर यानी "कुल चिकनाई तत्व")
🔹 TFM क्या है?
TFM बताता है कि साबुन में कितना प्रतिशत असली साबुन है और बाकी कितना भराव या सस्ता केमिकल मिलाया गया है।
TFM जितना ज़्यादा होता है, साबुन उतना ही अच्छा और मुलायम होता है।
TFM जितना कम होता है, साबुन उतना ही हार्श यानी खुरदरा और त्वचा को नुकसान पहुँचाने वाला होता है।
🔸 भारत में साबुन TFM के हिसाब से तीन ग्रेड में बांटे जाते हैं:
साबुन ग्रेडTFM प्रतिशतउपयोगGrade 1 साबुन76% या उससे ज़्यादासबसे अच्छा — त्वचा के लिए सुरक्षितGrade 2 साबुन70% से 75% के बीचठीक-ठाक — रोज़मर्रा के इस्तेमाल के लिएGrade 3 साबुन60% से कमसस्ता, लेकिन त्वचा को नुकसान पहुँचा सकता है
🔍 कैसे पहचानें TFM?
हर अच्छे साबुन के पैकेट पर लिखा होता है — "TFM: 76%" या "Grade 1 bathing soap"
अगर TFM लिखा ही नहीं है, तो समझ लीजिए कि वो साबुन भरोसे के लायक नहीं है।
🧴 उदाहरण:
साबुन का नामTFM ग्रेडकैसा है?लक्स (Lux)Grade 1 (~76% TFM)ठीक-ठाक, स्किन फ्रेंडलीसाबुन-ए-हिमालय (Herbal)Grade 1 (~78-80% TFM)बेहतरीन, हर्बल और सुरक्षितलाइफबॉय (Lifebuoy)अक्सर Grade 3 (~60% से कम)सख्त, स्किन को नुकसान पहुँचा सकता है
✅ क्या देखना चाहिए साबुन खरीदते समय?
🔹 पैकेट पर TFM या Grade 1 लिखा हो।
🔹 नेचुरल इंग्रेडिएंट्स (नीम, तुलसी, एलोवेरा आदि) हों।
🔹 ब्रांड भरोसेमंद हो।
🔹 ज्यादा झाग मतलब अच्छा साबुन नहीं — TFM देखें, न कि झाग।
🔚 निचोड़ (सारांश):
TFM = साबुन की असली गुणवत्ता।
जैसे दूध में मलाई देखी जाती है, वैसे ही साबुन में TFM देखा जाना चाहिए।
TFM जितना ज़्यादा, साबुन उतना अच्छा।
TFM जितना कम, स्किन के लिए उतना ख़तरनाक।
सस्ता साबुन = सस्ती सोच नहीं होना चाहिए।
अपना शरीर अनमोल है, उसके साथ खिलवाड़ मत करो।
अगली बार जब साबुन खरीदो — सोचो, समझो और फिर खरीदो।
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